8:00 AM

नौटंकी को लेकर थारू जनप्रतिनिधि खेमों में बंटे

खटीमा(ऊधमसिंहनगर)।

( दैनिक जागरण २२ जनवरी २०१० मे छपी खबर के अनुसार )

थारू जनजाति के विवाह समारोहों में नौटंकी के प्रदर्शन की दशकों पुरानी परंपरा पर रोक लगाने के विरोध व समर्थन में मुहिम तेज हो गई है। थारू समुदाय के जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर खेमों में बंट गए हैं। जनजाति के असरदार संगठन राणा थारू परिषद ने नौटंकी के दौरान होने वाली अश्लीलता को थरूवाट की संस्कृति के खिलाफ बताते हुए इसके प्रदर्शन पर रोक लगाने की पुरजोर मांग दोहरायी है। वहीं कुछ जनप्रतिनिधियों ने ऐसे प्रयासों के विरोध का ऐलान किया।

तराई की थारू जनजाति अपनी विशिष्ट जीवन शैली व संस्कृति के लिए जानी जाती है। आधुनिक दौर में भी थरूवाट की दशकों पुरानी कई परंपराएं पहले की तरह समुदाय के लोगों की जीवनशैली का हिस्सा हैं। नौटंकी का प्रदर्शन भी थारू समुदाय के जनजीवन से जुड़ा हुआ है। पुराने समय में थरूवाट के विवाह समारोहों में मनोरंजन के लिए बाहरी क्षेत्रों के नौटंकी दलों के कलाकारों को बुलाया जाता था। जो पौराणिक कथाओं का मंच पर प्रदर्शन करते थे। थरूवाट में आज भी शादियों में नौटंकी के आयोजन की परंपरा है। लेकिन आधुनिकता के दौर में नौटंकी भी अपने मूल स्वरूप को खो चुकी हैं। नौटंकी में फिल्मी गीतों पर उत्तेजक नृत्य करती महिला कलाकार थरूवाट में कहीं भी देखी जा सकती हैं। परंपरा के नाम पर सांस्कृतिक आयोजन के विकृत स्वरूप का असर समुदाय के युवाओं पर देखा जा रहा है। राणा थारू परिषद ने नौटंकी का प्रदर्शन बंद कराने को मुहिम छेड़ रखी है। संगठन के उपाध्यक्ष व पूर्व जिला पंचायत सदस्य रमेश राणा का कहना है कि भले ही नौटंकी का आयोजन परंपरा से जुड़ा हो, लेकिन मौजूदा स्वरूप में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। वहीं दक्षिणी समिति के अध्यक्ष कृष्णकृपाल सिंह राणा ने नौटंकी के आयोजन को थारू संस्कृति का हिस्सा बताते हुए इस पर रोक की मांग को गलत बताया।



अब आप सभी लोग बताएं कि क्या होना चहिये?

क्या हम ही लोग आपस मे बट जाने चहिये | क्या नौटंकी के आयोजन शादियों मे करके हम खुद अपने समाज को पीछे की ओर नहीं धकेल रहे है?

यदि आपने गौर किया होगा की इन नौटंकी मे क्या क्या नहीं पेश किया जाता है? मुझे तो यह लगता है कि यह हमारे समाज कि एक खतरनाक बुराई है जिसको हमे जड़ सहित मिटा देना चाहिए ..................

7:00 AM

नौटंकी के विरोध में सड़कों पर उतरे कई संगठन

खटीमा(ऊधमसिंह नगर):

( दैनिक जागरण १२ जनवरी २०१० मे छपी खबर के अनुसार )

विकासखंड क्षेत्र के थारू जनजाति बाहुल्य गांवों में विवाह समारोहो के दौरान नौटंकी प्रदर्शन रोके जाने की मांग को लेकर कई संगठन सड़कों पर उतर आए हैं। इन संगठनों ने मंगलवार को नगर में जुलूस निकालने के बाद तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपा। साथ ही तीन दिन के भीतर कार्रवाई न होने पर नौटंकी मंडलियों को खुद ही क्षेत्र से खदेड़ने का ऐलान किया।

बीडीसी सदस्य पूनम राणा के नेतृत्व में महिला समाख्या, सवेरा संघ, महिला मंगल दल, भूमि अधिकार मंच, क्षेत्रीय युवक समिति आदि संगठनों के कार्यकर्ता ब्लाक मुख्यालय से जुलूस की शक्ल में तहसील मुख्यालय पहुंचे और वहां प्रदर्शन किया। बाद में उन्होंने एसडीएम को संबोधित ज्ञापन भी सौंपा। जिसमें कहा गया है कि थारू समाज के विवाह समारोह में होने वाले नौटंकी के आयोजनों से अश्लीलता को बढ़ावा मिल रहा है। साथ ही सांस्कृतिक प्रदूषण बढ़ रहा है। इस दौरान अराजकता की स्थिति भी बनी रहती है। ज्ञापन में नौटंकी दलों को तीन दिनों के भीतर क्षेत्र से बाहर करने की मांग की गई है। साथ ही चेतावनी दी गई कि यदि समय सीमा के दौरान कार्रवाई नही की गई तो संगठन खुद इस काम को अंजाम देंगे।

2:28 AM

Rana Peoples Visiting at Rajasthan(Olds Memories)

यहाँ पर मै कुछ पुरानी फोटो पोस्ट कर रहा हूँ जिसमे हमारे कुछ राणा लोगों ने राजस्थान का भ्रमण किया और उस पवित्र पवन धरती मे गए जहाँ हमारे पूर्वजो ने जन्म लिया था |

















11:39 PM

धन्य हुआ रे राजस्थान, जो जन्म लिया यहां प्रताप ने।


Ratan Singh Shekhawat


धन्य हुआ रे राजस्थान, जो जन्म लिया यहां प्रताप ने।

धन्य हुआ रे सारा मेवाड़, जहां कदम रखे थे प्रताप ने॥

फीका पड़ा था तेज़ सूरज का, जब माथा ऊचा तु करता था।

फीकी हुई बिजली की चमक, जब-जब आंख खोली प्रताप ने॥

जब-जब तेरी तलवार उठी, तो दुश्मन टोली डोल गयी।

फीकी पड़ी दहाड़ शेर की, जब-जब तुने हुंकार भरी॥

था साथी तेरा घोड़ा चेतक, जिस पर तु सवारी करता था।

थी तुझमे कोई खास बात, कि अकबर तुझसे डरता था॥

हर मां कि ये ख्वाहिश है, कि एक प्रताप वो भी पैदा करे।

देख के उसकी शक्ति को, हर दुशमन उससे डरा करे॥

करता हुं नमन मै प्रताप को, जो वीरता का प्रतीक है।

तु लोह-पुरुष तु मातॄ-भक्त, तु अखण्डता का प्रतीक है॥

हे प्रताप मुझे तु शक्ति दे, दुश्मन को मै भी हराऊंगा।

मै हु तेरा एक अनुयायी, दुश्मन को मार भगाऊंगा॥

है धर्म हर हिन्दुस्तानी का, कि तेरे जैसा बनने का।

चलना है अब तो उसी मार्ग, जो मार्ग दिखाया प्रताप ने॥..


9:31 PM

Lost in golden memory

I myself Amit Singh Rana welcomes every member of my community .
They are requested to give their valuable comments.
What they think how our community can be developed.

12:01 AM

समाज के लिए हमारा कर्तव्य

मै जब भी सोचता हूँ की मै अपने समाज के लिए क्या कर सकता हूँ ?
तब मेरे दिल मै यही ख्याल कि मै अपने लोगों मे जागरूकता ला सकता हूँ जिससे मेरे अपने लोग सोचे की वो अपना कुछ न कुछ योगदान दे सकते है थारू समाज के लोगों का स्तर सुधरने मे I
अब आप लोग यह सोचेंगे कि हम सभी इस काम मे कैसे मदद कर सकते है ? मेरा सोचना है कि आज भी हमारे समाज मे कई बच्चे या लड़के लडकिया ऐसे है जिनको सही समय मे सही मार्गदर्शन नही मिल पता है जिससे वह भविष्य मे ज्यादा तरक्की नहीं कर पाते है I मुझे पूरा यकीन है कि हमारे सभी भाइयों बहनों मे कुछ न कुछ विलक्षण प्रतिभाएं है I परन्तु जरूरत इस बात की है कि उनको सामने कैसे लाया जाए ? मैंने यह ब्लॉग इसलिए लिखना शुरु किया है ताकि आप लोग मुझे अपना कीमती सुझाव दे सके I और मै उन सुझाव को समाज के उन लोगों तक पंहुचा सकु जो हमारे समाज के भविष्य को सुधरने की कोशिश मै कार्यरत है I
आपके सहयोग के इन्तजार मे....................................



हेमन्त सिंह राणा

12:02 AM

विलक्षण व्यक्तित्व के धनी महाराणा प्रताप


‘‘माई ऐहडा-पूत जण, जेहा राणा प्रताप।
अकबर सूतो ओझके, जाण सिराणे सांप ।।

भारतीय इतिहास में एक गौरवशाली रणक्षेत्र् हल्दीघाटी का नाम आते ही मन में वीरोचित भाव उमडने - घुमडने लगते हैं। अरावली पर्वतमाला की उपत्यकाओं से आच्छादित इस रणक्षेत्र् में स्थित 432 वर्ष पूर्व के विशाल वृक्ष और जल प्रवाह के नाले मूक साक्षी बने आज भी वद्यमान है। यह घाटी दूर कहीं से रही घोडों की टाप को रोमांचित करती आवाज और हाथियों की चिघांड से मानो गुंजायमान होने लगती है। रणभेरियों की आवाजें मन को मथने सी लगती है। उसी क्षण दूर से एक श्वेत रेखा दृष्टिगत होती है। समीप आती हुई यह रेखा चेतक का रूप ले लेती है। यही आसमानी रंग का घोडा राणा प्रताप को प्राणों की तरह प्रिय था। लगता था मानों यह अश्व अपने अद्वितीय सवार को लेकर हवा में उडा जा रहा था। दृढ प्रतिज्ञ एवं विलक्षण व्यक्तित्व के धनी महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को कुम्भलगढ में हुआ पिता उदयसिंह की मृत्यु के उपरान्त राणा प्रताप का राज्याभिषेक 28 फरवरी, 1572 को गोगुन्दा में हुआ। विरासत में उन्हें मेवाड की प्रतिष्ठा और स्वाधीनता की रक्षा करने का भार ऐसे समय में मिला जबकि महत्वाकांक्षी सम्राट अकबर से शत्रुता के कारण समूचा मेवाड एक विचित्र् स्थिति में था। सम्राट अकबर ने मैत्रीपूर्ण संधि के लिए एक कूटनीतिक प्रस्ताव महाराणा को भेजा परन्तु वह शूरवीर इस प्रस्ताव से गुमराह होने की बजाय मुगलिया सेना को सबक सिखाने का निश्चय कर मेवाड की राजधानी गोगुन्दा से बदल कर कुम्भलगढ कर ली। प्रताप ने अपने दूरदराज के अंचलों से भारी संख्या में भीलों को एकत्रित किया। उनकी सेना में दो हजार पैदल, एक सौ हाथी, तीन हजार घुडसवार एक सौ भाला सैनिक तथा दुन्दुभि नगाडे बजाने वाले थे। अकबर की ओर से मानसिंह के नेतृत्व में पांच हजार सैनिकों की एक टुकडी तीन हजार अन्य विश्वस्त व्यक्तियों ने मेवाड में बनास नदी के तट पर पडाव डाल दिया। 21 जून, 1576 को प्रातः दोनों ओर की सेनायें आमने-सामने पहुंची। प्रताप की सेना घाटी में तथा मुगलिया सेना बादशाह बाग के उबड - खाबड मैदान में डट गई। दोनों और से पहले पहल करने की ताक में खडी सेनाओं में मुगलों की सेना के कोई अस्सी जवानों की टुकडी ने घुसपैठ शुरू कर दी। प्रताप को यह कब सहन होने वाला था ? रणभेरी के बजते ही प्रताप ने हल्दीघाटी के संकरे दर्रे पर ही मुगलों को करारी हार का प्रथम सबक सिखा दिया और ऐसा जबरदस्त प्रहार किया कि शाही सेना में खलबलाहट मच गई। देखते ही देखते यह युद्ध रक्त तलाई के चौडे स्थल में होने लगा। तलवारों की झंकार से गुंजायमान यह रणक्षेत्र् दोनों ही सेनाओं के सैनिकों के रक्त से लाल हो उठा। इस विप्लवकारी नाजुक हालत में प्रताप ने अपने चेतक घोडे को ऐड लगा हाथी पर सवार मानसिंह पर भाले से तेज प्रहार किया परन्तु हाथी के दांत में बंधी तलवार से चेतक बुरी तरह घायल हो गया। हालात ने राणा को रणक्षेत्र् छोडने के लिए विवश कर दिया। झाला मान ने मुगलिया सेना से घिरे अपने स्वामी प्रताप को राष्ट्रहित में बचाने के लिए मेवाड का राजमुकुट अपने सिर पर रखकर प्रताप को युद्ध क्षेत्र् से सुरक्षित बाहर निकालने में तो सफल हो गया परन्तु स्वयं ने लडते हुए वीरगति प्राप्त कर ली। हल्दीघाटी के इस विश्व विख्यात युद्ध में प्रताप की सीधी जीत भले ही नहीं हुई हो परन्तु मातृभूमि के रक्षक, स्वतंत्र्ता सेनानी, महान त्यागी, स्वाभिमानी, पक्के इरादों के धनी के रूप में महाराणा प्रताप राजपुताने के गौरव और उसकी शानदार परम्पराओं के द्योतक बने हुए हैं। मुगलों के अभिमान के लिए सदैव सिरदर्द बने रहे प्रताप ने अपनी नई राजधानी चावण्ड बनाई जहां 19 जनवरी, 1597 को उनका देहान्त हो गया। चावण्ड में बनी उनकी समाधि पर पहुंचते ही यह दोहा स्मृति पटल पर उभरने लगता है :-

‘‘माई ऐहडा-पूत जण, जेहा राणा प्रताप।

अकबर सूतो ओझके, जाण सिराणे सांप ।।


कहना होगा कि हल्दीघाटी का युद्ध एक विचार शक्ति बन कर जन मानस को आंदोलित करते हुए प्रकाश स्तम्भ के रूप में इस तरह उभरा कि विश्व की महानतम शक्तिशाली रही भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी को स्वामी भक्त अश्व चेतक की समाधि तक आने के लिए विवश होना पडा। 21 जून, 1976 को राजस्थान सरकार द्वारा हल्दीघाटी स्वातंत्र्य, संग्राम की स्मृति में आयोजित चतुःशती समारोह में इन्दिरा जी शिरकत करने हल्दीघाटी के ऐतिहासिक रणक्षेत्र् में पहुंची तो राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. हरिदेव जोशी के नेतृत्व में वहां उपस्थित विशाल जन समूह ने तुमूल करतल ध्वनि से उनका स्वागत अभिनन्दन किया। श्रीमती गांधी सीधी चेतक की समाधि पर पहुंची और अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद प्रतापी प्रताप के जिरह बख्तर के संग्रहालय का अवलोकन करने गई। उन्होंने इस रणक्षेत्र् की महत्ता को अक्षुण्य बनाये रखने के उपायों पर चर्चा करते हुए अपने अमूल्य सुझाव भी दिये। वे इस महान सपूत के अद्वितीय कृतित्व से अभिभूत हो एक नई स्फूर्ति, दिशा और संकल्प के साथ लौटी। हल्दीघाटी का विश्व विख्यात रणक्षेत्र् हमारी राष्ट्रीय धरोहर के रूप में जाना और माना जाता रहा है। परन्तु आजादी के बाद विकास की पिपासा शांत करने के लिए जिस तरह इस धरोहर का मौलिक स्वरूप ही बदल दिया गया। वह निश्चित ही ऐतिहासिक प्रतीकों को धूरि धूसरित करने से कम नहीं है। रण क्षेत्र् का मुख्य स्थल रक्त तलाई पर सरकारी भवनों का निर्माण और खेती के लिए अतिक्रमण तथा संकरे दर्रे को तोडकर चौडा स्थान बना देना, इसके साक्षात प्रमाण हैं। इसीलिए इन्दिरा गांधी ने इस स्थल को अक्षुण्य बनाये रखने की आवश्यकता प्रतिपादित की थी। आशा की जानी चाहिए कि केन्द्र और राज्य की सरकारें इस ओर कुछ करने के प्रति सचेष्ट होंगी।